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रुचि के स्थान

मनेन्द्रगढ़-चिरमिर-भरतपुर जिले में कुछ महत्वपूर्ण स्थान इस प्रकारे है-

अमृतधारा जलप्रपात

अमृतधारा एम.सी.बी. जिले के मुख्यालय मनेन्द्रगढ़ से 26 किमी दूर हसदेव नदी पर स्थित है. यहाँ हसदेव नदी का पानी 90 फीट की उंचाई से गिरता है. इतनी उंचाई से गिरने से पानी दूध के सामान दिखाई देता है. ऊंचाई से गिरने के कारण पानी के छोटे छोटे कण हवा के आसपास बिखरते हुए हृदय को ठंडक पहुंचाते हैं वर्षा ऋतु में यह दृश्य और भी विहंगम हो जाता है यहां एक शिव का मंदिर है. यहां महाशिवरात्रि मेला लगता है नये वर्ष में स्थानीय लोगो के अलावा आसपास से जिले के पर्यटक बड़ी संख्या में पिकनिक मनाने यहाँ आते हैं|

रमदहा जलप्रपात

एमसीबी जिले के जनकपुर विकासखंड में सैलानियों व पर्यटकों को नए वर्ष व पिकनिक के मौसम में लुभाता यह जिले का दूसरा बड़ा जलप्रपात है। यह जिला मुख्यालय से लगभग 80 किमी दूर कठौतिया-चुटकी भंवरखोह होते हुए रमदहा पहुंचा जाता है। श्याम वर्णीय चट्टानों से घिरा यह प्रपात जिसमें बनास नदी का पानी लगभग 70 फीट की ऊंचाई से गिरता है जिससे दृश्य मनोरम हो जाता है।

राष्ट्रीय मरीन गोंडवाना फॉसिल्स पार्क

यह जिला मुख्यालय से दूरी लगभग 2 किमी पर है|हसदेव नदी के तट पर आज भी फॉसिल्स देखा जा सकता है। वैज्ञानिकों के अनुसार 28 करोड़ वर्ष पूर्व वर्तमान हसदेव नदी के स्थान पर एक हिमनदी थी जिसमें बाद में एक पतली पट्टी के रूप में समुद्र के रूप में प्रवेश हुआ जिसे ‘टाथिस’ सी कहा जाता है जिसके माध्यम से समुद्री जीव जंतु मनेंद्रगढ़ के वर्तमान हसदेव नदी में थे जो धीरे-धीरे खत्म हो गये लेकिन उनके जीवाश्म आज भी उक्त स्थल पर देखे जा सकते हैं|सबसे पहले मरीन गोंडवाना फॉसिल्स पार्क की खोज 1954 में एस.के. घोष ने की थी और उन्होंने समुद्री जीवाश्म का अध्ययन किया और पुराने जीवाश्म की जानकारी अन्य वैज्ञानिकों को उपलब्ध कराई। वर्ष 2015 में बीरबल साहनी इंस्टीट्यूट ऑफ पेलियो साइंसेज लखनऊ के वैज्ञानिकों ने भी इस की पुष्टि की।

सिद्ध बाबा पहाड़

एमसीबी जिले का मुकुट कहा जाने वाला सिद्ध बाबा पहाड़ राष्ट्रीय राजमार्ग 43 से लगभग 1 किमी अंदर स्थित है सड़क मार्ग से ऊंचाई लगभग 80 मीटर है। केदारनाथ की तर्ज पर भव्य शिव मंदिर का निर्माण स्थानीय नागरिकों व सिद्ध बाबा समिति के सदस्यों द्वारा जन सहयोग से किया जा रहा है। केदारनाथ की तर्ज पर बने विशाल शिव मंदिर ने इस पहाड़ी की भव्यता को और भी बढ़ा दिया है।

चांग देवी

जिला मुख्यालय से इसकी दूरी लगभग 120 किमी है| कठौतिया- केल्हारी-जनकपुर होकर चांग देवी के मंदिर पहुंचा जाता है। यह चांगभखार (जनकपुर) रियासत की ही नहीं, कोरिया रियासत की भी कुलदेवी है। वास्तव में यहां देवी की मूर्ति नहीं है लगभग 6 सेंटीमीटर मोटी पत्थर की शिला है जो सड़क से हटकर जंगल में निर्जन स्थान पर गाड़ी गई थी यही है चांग देवी जिसमें लोगों की अगाध आस्था है यह प्रतिमा कलचुरी शिल्प कला की प्रतीक मानी जाती है।

रॉक पेंटिंग (शैल चित्र)

जिला मुख्यालय से इसकी दूरी लगभग 110 किमी है|एमसीबी जिले के जनकपुर तहसील में पत्थरों को काटकर शैल चित्र बनाए गए हैं। यहां जनकपुर के चुटकी के भंवनखोह (कोहबऊर) व तिलौली ग्राम में बड़ी संख्या में शैल चित्र प्राप्त हुए हैं। कोहबउर में कोहबर के चित्र के अलावा बैल, हल, हिरण, मेंढ़क, पंजा, स्वास्तिक, मानव आकृतियाँ, मुर्गी, ऊँट के शैल चित्र हैं। तिलौली में काले रंग की मानव आकृति, लाल रंग का हिरण, कमल पुष्प् व लिपि का अंकन है।

सीतामढ़ी (जनकपुर)

जिला मुख्यालय से दूरी लगभग 110 किमी है|सीतामढी हरचौका का का प्राचीनकाल से श्रीराम वनवास काल में छ.ग. में सर्वप्रथम एम.सी.बी. जिले के भरतपुर विकासखण्ड के अंतर्गत जनकपुर से 25 किमी दूर स्थित है। सीतामढ़ी हरचौका में ही भगवान राम का पहला पड़ाव माना जाता है तथा मवई नदी के किनारे सीतामढ़ी हरचौका की गुफा में 17 कक्ष हैं जिसमें 12 कक्ष में शिवलिंग स्थापित हैं। इसी स्थान को हरचौका ‘सीता की रसोई’ के नाम से जाना जाता है तथा सीतामढ़ी (माता सीता की मढ़ियां) जहाँ भगवान राम व लक्ष्मण के साथ सीता जी रहती थीं। चंुकि यह स्थान भगवान राम का प्रथम पड़ाव माना जाता है इसलिये छत्तीसगढ़ शासन के द्वारा भगवान राम के छत्तीसगढ़ प्रवास के सारे स्थान को जोड़कर ‘श्रीराम वनगमन पथ’ का निर्माण कराया जा रहा है तथा इसे पर्यटन स्थल के रुप में विकसित करने की घोषणा की है। प्रसिद्ध इतिहासकार कर्मिंघम ने भी इस स्थान को चित्रकूट माना है।

घाघरा का प्राचीन मंदिर

जिला मुख्यालय से इसकी दूरी लगभग 140 किमी है|जिला मुख्यालय मनेन्द्रगढ़ से कठौतिया तिराहा, जनकपुर होते हुए घाघरा ग्राम पंहुचा जाता है. घाघरा ग्राम में पत्थरों से निर्मित यह मंदिर प्राचीन पुरातात्विक वास्तुकला की जीती-जागती मिसाल है जो दसवीं शताब्दी की मानी जाती है. इस मंदिर में देवी-देवताओं की मूर्ति नही है. लेकिन इसे देखने से लगता है यह बौद्ध-कालीन मंदिर है तथा इसमें गौतम बुद्ध की प्रतिमा रही होगी ऐसा माना जाता है. वहीँ कुछ लोगों का मानना है कि यहाँ भगवान शिव की मूर्ति रही होगी|

जटाशंकर गुफा

यह जिला मुख्यालय से लगभग 50 किमी की दूरी पर है|एम.सी.बी. जिले के मनेन्द्रगढ़ विकासखंड अंतर्गत आने वाले ग्राम बिहारपुर के बैरागी से लगभग 12 किमी दूर घनघोर जंगल में आगे पहाड़ी के नीचे स्थित जटाशंकर पहाड़ी के अन्दर छोटी सी गुफा है. इस गुफा के अन्दर लगभग 50 फीट घुटनों और कोहनी के बल अन्दर पहुंचा जाता है. यहाँ शिवलिंग स्थित है. इस शिव मंदिर को श्रद्धालू जटाशंकर के नाम से पुकारते हैं. इसका कारण है कि शिव की प्राचीन शिवलिंग में जटाओं जैसी आकृति दिखाई देती है. कहा जाता है कि शिव की मूर्ति के ऊपर कुदरती रूप से जल की बूँदें गिरती रहती हैं|

महामाया मंदिर (चनवारीडांड़ तहसील खड़गवां)

यह जिला मुख्यालय से लगभग 50 किमी की दूरी पर है| मनेन्द्रगढ़ से चिरमिरी-कटघोरा मुख्यमार्ग से हटकर लगभग 2 किमी अंदर माँ महामाया का मंदिर स्थित है। सैकड़ों वर्ष पूर्व इस क्षेत्र के पूर्व जमींदार परिवार को माँ महामाया के दर्शन हेतु रतनपुर (बिलासपुर) जाना पड़ता था। बताया जाता है कि इस समय के खड़गवां जमींदार राघवप्रताप सिंह के पिता यहाँ देवी की मूर्ति बनाकर प्रतिस्थापित किया। यहाँ प्रतिदिन बैगा पूजा करते हैं व केवल नवरात्र के नौ दिन ब्राम्हण पूजा करते हैं। स्थानीय जमींदार परिवार नवरात्र की अष्टमी को पूजा करते हैं। स्थानीय नागरिकों व जनप्रतिनिधियों के सहयोग से निरंतर इस मंदिर का विस्तार हो रहा है तथा नवरात्रि में भारी भीड़ देखने को मिलती है।